- उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में 23-24 जून को शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के सम्मेलन के दौरान भारत को पाकिस्तान के साथ चीन के प्रभुत्व वाले इस समूह की सदस्यता मिल गयी है। सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाग लिया।
- एससीओ को नाटो के मुकाबले तैयार हो रहे संगठन के तौर पर देखा जा रहा है और इसकी सदस्यता भारत को आतंकवाद से मुकाबला करने के साथ ही सुरक्षा और रक्षा से संबंधित मुद्दों पर व्यापक तरीके से अपनी बात कहने में मदद करेगी।
- दुनिया में सर्वाधिक ऊर्जा खपत वाले देशों में शामिल भारत एससीओ का सदस्य बनने के बाद मध्यएशिया में बड़ी गैस और तेल अन्वेषण परियोजनाओं में अपनी पैठ बढ़ा सकता है।
- एससीओ ने पिछले साल जुलाई में उफा में हुए सम्मेलन के दौरान भारत को सदस्य बनाने के लिए जमीन तैयार की थी और तब भारत, पाकिस्तान तथा ईरान को सदस्यता देने में प्रशासनिक अवरोधों को साफ किया गया था। भारत सम्मेलन में एससीओ की पूर्ण सदस्यता की प्रक्रिया पूरी की।
=>SCO का इतिहास :-
- रूस, चीन, किर्गिज गणराज्य, कजाखस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने 2001 में शंघाई में एक सम्मेलन में एससीओ की स्थापना की थी।
- भारत, ईरान और पाकिस्तान को 2005 के अस्ताना सम्मेलन में पर्यवेक्षकों के तौर पर इसमें शामिल किया गया था।
- ताशकंद में जून 2010 में हुए एससीओ के सम्मेलन में नयी सदस्यता पर लगी पाबंदी हटा दी गयी थी और समूह के विस्तार का रास्ता साफ हो गया था।
- भारत को लगता है कि एससीओ सदस्य के रूप में वह क्षेत्र में आतंकवाद के खतरे पर ध्यान देने में बड़ी भूमिका निभा सकेगा।
- भारत एससीओ के साथ और उसके क्षेत्रीय आतंकवाद निरोधक ढांचे (आरएटीएस) के साथ अपने सुरक्षा संबंधी सहयोग को गहरा करना चाहता है।
- रूस एससीओ में भारत की स्थाई सदस्यता का पक्षधर रहा है वहीं चीन ने पाकिस्तान को शामिल करने पर जोर दिया है।